कलियुगको कृष्ण
एक कल्पना- कलियुगको कृष्ण
मारवाडी भाषामा लेखिएको हाँस्य-ब्यङ्ग्यात्मक कविता
द्वापर म तु ,जन्मयो कान्हा ! बड़िया करयो
नही तो, कलियुग म, तेर साग आ होती
तेर हाथ म,पथ्थर क बदल
आज अँखिया की बोली होती
और ब्रज की गोपी क बदल,
तेर बगलम्, मिस युनिवर्स
और मिस वर्लड कि टोली होती
और बचपन का ग्वाल-बाल क बदल
नेता कि टोली होती
दूध-दही कि तन, चोरी कोनी करनी पड़ती
दायरो इसको, बड़ जातो
घुस भ्रष्टाचार को बोल बालो हो तो
घोटाला को हो तो अम्बार
गगरी फोडन कंकर कोनी फेकतो
खाद्य-पदार्थ कि, मिलावट म आ जाता काम
नाप तेरी, इच्छा स्यूँ देतो
जद पेकेट प वेन पेकड लिख देतो
दूध-दही माखन कि नदियाँ
अब डब्बा पेकेट और पोच म खोजन पडतो
दुध-दही-माखन के बदल
अब तन, ब्हीसकी बियर और ड्रग्स म रमणो पड़तो
अरे पासाॅ को जुवो तो पुरानो पड़ग्यो
तास कि पती स्यूं- काम चलानो पड़तो
आज कोरव और पाण्डव क लिए
फेर एक नयो केसिनो खुलवानो पडतो
द्रोपती अगर आजकी द्रोपत्या क बराबर का कपड़ा
पेहरयाँ होती
तो चिर-हरण ही, क्यों करनो पड़लो
काली नाग प, ता थैया-ता थैया क बदल
होटला म केबेरे तन करनो पड़तो
बन सारथी तन, रथ म कोनी बैठनो पड़तो
बस घर म बैठ, बटन एक दबानो पड़तो
धूम-धडाम और सब खतम
द्वापर म तु जन्मयो कान्हा बड़िया करयो
नही तो ओ सब तन्ही तो करतो पड़तो
द्वापर म तु जन्मयो कान्हा बड़िया करयो
नही तो ओ सब तन ही तो भुगतनो पडतो
भद्रपुर-5 झापा