कलियुगको कृष्ण

खगिन्द्रा खुसी · असार १२, २०८१ ८:१५ AM
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एक कल्पना- कलियुगको कृष्ण       
मारवाडी भाषामा लेखिएको हाँस्य-ब्यङ्ग्यात्मक कविता
  
द्वापर म तु ,जन्मयो कान्हा ! बड़ि‌या करयो 
नही तो, कलियुग म, तेर साग आ होती 
तेर हाथ म,पथ्थर क बदल 
आज अँखिया की बोली होती
और ब्रज की गोपी क बदल, 
तेर बगलम्, मिस युनिवर्स 
और मिस वर्लड कि टोली होती                                                                 
और बचपन का ग्वाल-बाल क बदल 
नेता कि टोली होती                                              
 दूध-दही कि तन, चोरी कोनी करनी पड़ती 
दायरो इसको, बड़ जातो                                       
घुस भ्रष्टाचार को बोल बालो हो तो                     
घोटाला को हो तो अम्बार 
गगरी फोडन कंकर कोनी फेकतो 
खाद्य-पदार्थ कि, मिलावट म आ जाता काम 
नाप तेरी, इच्छा स्यूँ देतो 
जद पेकेट प वेन पेकड लिख देतो                            
दूध-दही माखन कि नदियाँ 
अब डब्बा पेकेट और पोच म खोजन पडतो               
दुध-दही-माखन के बदल 
अब तन, ब्हीसकी  बियर और ड्रग्स म रमणो पड़तो  
 अरे पासाॅ को जुवो तो पुरानो पड़ग्यो                        
तास कि पती स्यूं- काम चलानो पड़तो 
आज कोरव और पाण्डव क लिए                             
फेर एक नयो केसिनो खुलवानो पडतो                 
 द्रोपती अगर आजकी द्रोपत्या क बराबर का कपड़ा 
पेहरयाँ होती                                                         
तो चिर-हरण ही, क्यों करनो पड़लो 
काली नाग प, ता थैया-ता थैया क बदल 
होटला म केबेरे तन करनो पड़तो                              
बन सारथी तन, रथ म कोनी बैठनो पड़तो 
बस घर म बैठ, बटन एक दबानो पड़तो                    
धूम-धडाम और सब खतम                                         
द्वापर म तु जन्मयो कान्हा बड़ि‌या करयो                   
नही तो ओ सब तन्ही तो करतो पड़तो                    
द्वापर म तु जन्मयो कान्हा बड़िया करयो                  
 नही तो ओ सब तन ही तो भुगतनो पडतो                        
 भद्रपुर-5 झापा

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